Monday, December 6, 2010

कभी जब मैं यूँ ही तन्हा

कभी जब मैं यूँ ही तन्हा बैठता हूँ ..

और अचानक ही पुरानी यादों की 



बारिशें,


बूँद बनकर टप-टप गिरती हैं 



तो....

मेरे जेहन में बेतरतीब से ख्याल 



आने लगते हैं...

और मेरी कलम, 




कागज़ पे लफ्ज़ उकेरने को मचलने लगती है....

तब मैं जो भी कुछ कहता हूँ... 




उन्हें सिर्फ ये उन्वान देता हूँ.......

मेरे मुह पर ये सुनेहरा-लाल

मेरे मुह पर ये सुनेहरा-लाल 


आचल रहने दे

अच्छा लगता है आँखों में ये 



काजल रहने दे


मेरे दिल में मत कर तलाश ये 



दुनिया-दारी

मुझे दिल्ली का वही आवारा 



पागल रहने दे


अपने इस दिल में मुझे जगह भी 



ना दे अब

मुझे वही बरसता, भटकता, बादल रहने दे

चंद रोज बाद बहुत दूर चला जाऊगा तुझसे


मेरे पास भी फुरसत के एक-दो पल रहने दे

बेदिल माहे-सितम्बर की ये अठरा तारीख है


कहाँ जाएगा तू घर को छोड़ कर चल रहने दे