
वह आँखे जीनमे दर्द बसा है कही
गीरकर फ़ीर से उठने का सपना दबा है वही
वह काले बीज सपने अंकुरीत होते है जहा
त्न्हाई की जहराई मे प्यार का नीर छलकता है जहा
एक पर्षन के जवाब की तलाश मे नज़र आते है…
अक्सर आशा से बाते करता है वह
अगर वह चल सकता तो क्या यह होता
अगर वह दौड़ सकता तो कोई कुछ कहता
उम्मीद् के मील पथर पर मौत् के फ़ास्ले
क्या कुछ नही बताते है मुझे
पल-पल स्वपन-क्स्तूरी के पीछे उड़ना
बहुत कुछ का अहसास कराते है मुझे….
डुब्ती लफ़्ज़ो मे जब ध्ड़कन साथ छोड़ने लगे
और वीलुपत की प्यास बढ़ने लगे
तब इन आखो को बंद कर देखना
शायद नज़र आ जाए शीतीज के उस पार….