मै…, एक शब्द नही…, एक आवाज़ नही…, मै कोई रूह नही.., कोई कायनात नही.., सागर मे बेहता बूंद हू जो, साहील के रेत मे घुल जाता हू, फीर से बेहने के लीये…..॥