हमारे बीच को फांसला दिखाई तो दे .......
अब उस कलम से कसीदे लिखाये जाते हैं
वही कलम जो कभी इन्कलाब लिखता रहा .......
ये और बात की काँधों पे ले गये हैं उसे
किसी बहाने से दीवाना आज घर तो गया .........
अख़बारों से डर लगने लगा है
सो अब मैं देर तक सोने लगा हूँ .........
शायरी में मीरो ग़ालिब के जमाने अब कहाँ
सोहरतें जब इतनी सस्ती हैं अदब देखेगा कौन .......
बहुत सताते हैं रिश्ते जो टूट जाते हैं
खुदा किसी को भी तौफीके आशनायी न दे ...
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